सुहलदेव भर राजा बिहारिमल के पुत्र थे ! इनकी माता का नाम जयलक्ष्मी था ! सुहलदेव
राजभर के तिन भाई और एक बहन थी बिहारिमल के संतानों का विवरण इस प्रकार है !
१. सुहलदेव २. रुद्र्मल ३. बागमल ४. सहारमल या भूराय्देव तथा पुत्री अंबे देवी ! ऐसा
मान जाता है की सैयद सलार ने राजकुमारी अंबे देवी का अपहरण ४२३ हिजरी (१०३४ ई.)
मे कर लिया था ! जिसके कारण सैयद सलार तथा राजा सुहलदेव के बिच घमासान युद्ध
हुआ था ! इन बातो का उल्लेख मौला मुहम्मद गजनवी की किताब "तवारी ख ई -
महमूदी" तथा अब्दुर्रहमान चिस्ती की किताब " मिरात- ई- मसौदी" मे मिल जाति है !
अगर आप बलदेव प्रसाद गोरखा की पुस्तक "मंथनगीता" पड़ेंगे तो उसमे इस घटना का
बहुत ही अच्छे से वर्णन किया है ! उसके कुछ पंक्ति मे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ !
बजा नगाड़ा गढ़ भराईच,
सिगरी पल्टन भई तयार ।
गोला-गोला तोप तमन्चा,
सब हथियार सजे सरदार ।
दुसरे डंका के बाजत,
क्षत्रिय हथियार बन्द हो जाय ।
साजि सुसज्जित भइ पल्टन
सब गेटों में पहुँची जाय ।
खुला गेट तिसरे डंका पर,
पल्टन निकल पड़ी अरराय ।
भर भर भर भर सिंगरी पल्टन,
ओ भर भर हट दिया लगाय ।
जाके पहुँची रण खेतों में,
पल्टन लगी बराबर जाय ।
सुहेलदेव नृप गर्जन करके,
बोले नंगी तेग उठाय ।
कौने कैद किया अंबे को,
मेरी नजर गुजारो आय ।
कौन गाड़े है ये तम्बुआ,
कौने माड़ौ लिया छवाय ।
गर गर गर गर गाजी गरजा,
हमने धुरा दबाया आय ।
हमने गाडे है ये तम्बुआ,
माड़ौ हमने लिया छवाय ।
हमने कैद किया अंबे को,
बदला लेने को चलि आय ।
मुहम्मद गोरी तुमने मारा,
अल्लाउद्दीन गोरी दिया मराय ।
उसका बदला लेने आये,
हम गजनी के बीरजुझार ।
पूरा बदला हो ब्याहे से,
तब वापस गजनी सरदार ।
सुहेलदेव नृप बोलन लागे,
गाजी सुन लो कान लगाया ।
जल्दी छोड़ देव अंबे को,
मेरी नजर गुजारो लाय ।
औ तुम भागि जाव गजनी को,
वरना जाबे काम नसाय ।
गाजी बोला औ ललकार,
ओ भर्राइच के सरदार ।
यातो बदला लूं भैंने का,
या अंबे संग करुन विवाह ।
दगी सलामी है सैयद की,
गाजी हुकुम दिया करवाया ।
भँवरि परै यहाँ अंबे की,
सातौ भंवरि देव करवाय ।
गुस्सा होइके सुहेलदेव ने,
फौजों का किया निरिक्षण जाय।
गाजी बैठा है माडो में,
ओ अंबे को फौज घिराय ।
उसके बाद गौओं का घेरा,
दस हजार गौ लिया मंगाय ।
छिटपुट लश्कर जो गाजी की,
भर को काट रही चितलाय ।
गाजी गौ के अन्दर बैठा,
जिससे सुहेलदेव घबराय ।
गोला-गोली क्यों कर छूटे,
सन्मुख गाय बध्द हो जाय ।
धर्म नही है भर क्षत्रिय का,
जो गौ मां को करे प्रहार ।
पल्टन कट रही भर्राजा की,
राजा गये बहुत घबराय ।
हिन्दूधर्म नाश हो जइहैं,
जो न भगिनी लेब छुडाय ।
हे रण-चण्डी रण खेंतो की,
मइया मुक्ति देव बतलाया ।
खड़ी योगिनी भइ दहिने पर,
सूअर झुन्ड लिया मगंवान ।
औ घुसवाय दिया गौ अन्दर,
अब गौंओं का सुना बयान ।
भगदड़ मच गयी गौओं की,
खाली हुआ विकट मैदान ।
अब तक तुर्क भिरे रजभर पर,
काटि-काटि के दिया सुलाय ।
आयी बारी राजभरों की,
रण में कूदि पड़े अरराय ।
गोला छूटै भर्राइच कैं,
गोला दनकि-दनकि अरराय ।
भई लड़ाई रण खेतों में,
धुवना रहा गगन में छाय ।
चार घरी भर गोला बरसा,
तोपें लाल बरन ना जाय ।
घैं-घैं तोपे लाल बरन भै,
ज्वानन हाथ घरा ना जाय ।
तोप-चढाय दियो पीछे का,
सबने खींच लई तलवार ।
खट-खट तेगा बाजन लागे,
बाजै छपकि-छपकि तलवार ।
तेगा चटके वर्दमान के,
कटि-कटि गिरे सुघरवा ।
चलै चुवब्बी औ गुजजराती,
मीना चले विलायत क्यार ।
क्या गति और यही समया की,
सूरत कछू बरनि ना जाय ।
लाश के उपर लाश पाटि गै,
जैसे भरडीह रहा दिखलाया।
कटि-कटि मुण्ड गिरे धरती,
ताड़ फलों का लगी बजार ।
झुके बांकुरे भर्राइच के,
दोनों हाथ धरे तलवार ।
एक को मारैं काटि गिरावें,
गिरकर गोर सनाका खाय ।
फौजै काटि गयी गाजी की,
गाजी गया बहुत घबराय ।
पहुँचि सुरमा गै गाजी पर,
पहुँचा विसल देव सरदार ।
सुहत्तध्वज पीछे से पहुँचा,
समुंहे सुहेलदेव रण राय ।
डील नगोटा भै सैयद की,
सैयद घोड़ा दिया भगाय ।
सुहेल देव गाजी को देखा,
गाजी रहा भागता जाय ।
दे ललकार सुहलेदेव ने,
गाजी ब्याह लेव करवाय ।
बदला लेलो तुम भैंने का,
अब तुम भाग कहां को जाय ।
दई रगोदा सुहेलदेव ने,
गाजी आगे गया लुकाय ।
सूर्यकुण्ड में गुलइची लटकी,
उसने नीचे गया छिपाय ।
घोड़ा कुदाया सूर्यकुण्ड में,
मकड़ी जाल गया बिथराय ।
सुहैलदे सैनिक संग ढूँढत,
गिरगिट शान देखाया जाय ।
सैनिक पहुँचि गये कुवना पर,
लीला देखा एक अपार ।
जहाँ से कूदा था ओ गाजी,
मकड़ी बुन-बुन दिया बनाय ।
थोड़ा देख पड़ा ओ गाजी,
सुहेलदेव ने देखा जाय ।
तीक्षण बाण संघान के मारा,
गाजी गिरा धरनि पर जाय ।
पुरण काम हुआ गाजी का,,
गाजी वही गया दफनाय !
अंबे देवी गयी महलो मे,,
ख़ुशी मनाए मिली भर्राय!