भर और संविधान

१९३५ ई. मे भारत सरकार ने " गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट ऑफ़ १९३५ " पास किया! ईस एक्ट के मे ४२९ जातियों का समावेश किया गया ! सवेक्षण से पता चला "राजभार", "राज्झार", "रजवार","राजवार" और भर एक ही जाति के अलग अलग नाम है ! उत्तरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा, बंगाल, मध्यप्रदेश और बेरार मे राज्भारो कि उपस्थिति बताई गयी है ! जिनकी जनसँख्या सर्वेक्षण के अनुसार ६,३०,७०८ थी ! १९३१ ई. कि जनगणना रिपोर्ट के अनुसार यह गणना ठीक बैठती है ! इसमें भरो कि सम्पूर्ण जनसँख्या ५,२७६,१७४ बताई गयी है ! भरत के विभिन्न प्रदेशों मे भर/ राजभर जाति के लोग पाए जाते है ! पर ईस जाति कि जनसँख्या का घनत्व पूर्वांचल के जिलो मे अधिक है !ईस जाति के समग्र विकास के लिए भरत सरकार से समय समय पर सरकारी नौकरियो मे आरक्षण कि मांग कि जाति रही है ! सरकारी दस्तावेजो के अनुसार भर/राजभर को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के समकक्ष तो मान लिया गया है पर उस सूचि मे इस जाति को अभी तक समाहित नहीं किया गया है ! उत्तरप्रदेश सरकार ने भर/राजभर जाति को अनुसूचित जनजाति मे शामिल करने का सुझाव भारत सरकार को भेजा है पर इस पर अवि तक संसद मे बहस नहीं हो सकी है ! १० सितम्बर १९९३ ई. को मंडल आयोग कि सिफारिशो के आधार पर समाज कल्याण ,मंत्रालय, भारत सरकार ने केंद्र से जो सूचि अन्य पिछड़ी वर्ग कि जरी कि है उसके अनुसार भर/राजभर जाति को भी आरक्षण कि सुविधा दि गयी है ! बिहार प्रान्त मे भर और राजभर को दो अलग अलग जाति मानकर सरकारी नौकरियो मे आरक्षण का प्रावधान है ! जबकि उत्तर प्रदेश मे केवल भर जाति के नाम से आरक्षण दिया गया था ! ये सर्वदा गलत है भर और राजभर दोनों एक ही जाति है जिसे अलग अलग जाति करार देना सही नहीं है ! भविष्य मे शायद इस बात को लेकर भी बवाल खड़ा हो जाए ! जरुरत है सभी भर और राजभर भाइयो को एक जुट होकर अपने अधिकार के लिए लड़ने की ! हमारा राजभर/भर समाज अभी गहरी निंद्रा मे सो रहा है ! जब तक वो जागेंगे तब तक शायद बहुत देर हो जाए ! मेरा आप सभी से निवेदन है अपनी संस्कृति अपने इतिहास अपने आप को पहचानिए और अपने अधिकार के लिए खुद पहल करिए !