भारशिव वंश (नाग वंश) व राजा वीरसेन

भरत जाति ऋगवेदिक काल के आर्यों मे अनेक जातिया थी जो एक दुसरे से परम्परागत रूप से अलग थी! अनु , द्रुहाउ, यदु, तुर्वस,पुरु और भरत इत्यादि आर्यों के कबीले थे ! ऋगवैद से मालूम होता है कि भरतगन (तत्सू) उन कबीलों मे संख्या मे कम था जो आगे चलकर कुरुवंश मे शामिल हो गए ! भरतगन शत्रुओ से घिरे हुए और अल्पसंख्यक थे ! जब वसीष्ठ उनके पुरोहित हुए तब उनकी संतति ज्ञान को प्राप्त हुई! यही भरत जाति ऋगवेदिक काल मे ईसा पूर्व १९३१-१५६९ मे इतने शक्तिशाली बने कि सभी आर्य तथा अनार्य जातियों को जीतकर एक शक्तिशाली बन गयी कि सभी आर्य तथा अनार्य जातियों को जीतकर एक शक्तिशाली समराज्य कि स्थापना किया! अपने कबीले के नाम पर उसने अपने साम्राज्य का नाम "भारतवर्ष" रखा! भारत = भरत; वर्ष= खंड ! कुछ लोगो का मानना है कि दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष का नाम पड़ा! अनेक इतिहासकारों ने इसे अमान्य कर दिया है ! भारतवर्ष के सीमाओ का वर्णन विषणु पुराण मे इस प्रकार दिया है - भारतवर्ष समुन्द्र के उत्तर मे और हिमालय के दक्षिण मे स्थित है और वहा के संतान का नाम भारती है! ऋगवैद के अनुसार ( सप्तम मंडल, सूक्त ८३, श्लोक ६-१०) सरस्वती नदी के किनारे भरतगन का राजा सुदास राज्य कर रहा था ! जिसका राजपुरोहित विस्वामित्र था ! पर अनबन हो जाने के कारण सुदास ने विस्वामित्र को हटा कर वसीष्ठ को अपना राजपुरोहित घोषित कर दिया! इस पर विस्वामित्र नाराज होकर १० राजाओ के साथ सुदास पर आक्रमण कर दिया ! पर इस युद्घ मे राजा सुदास को जी विजय श्री मिली! इस तथ्य से साबित होता है कि आर्य के १० राजा, भरतगन राजा सुदास के शत्रु थे ! इससे इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि राजा सुदास आर्योतर शासक रहा हो ! बहुत से इतिहासकारों का अनुमान है कि यही भरत जाति आगे जाकर भर जाति के नाम से जाने जनि लगी ! हरिवंश पुराण , अध्याय ३३ , पृष्ट ५३ को लक्ष्य बनाते हुए हेनरी ऍम. इलियट ने कहा है कि भरत वंश भर जाति से सम्बंधित है ! जयध्वज इस वंश का शासक था, इसी बात को पुस्ती करने के लिए उन्होंने " ब्रहापुरण" को भी साक्ष्य बनाया है ! 'गुस्तब ओपर्ट' जो कि संस्कृत भाषावेत्ता है उनके अनुसार " ब्राहुई" जाति के बाद , प्राचीन जाति 'बरो' या भरो ने हमारा ध्यान आकर्षित किया है ! अनेक प्रमाणों के आधार पर हम ये निष्कर्ष पर पहुचते है कि भरत जाति इस देश कि मूल निवासी थी! इस जाति को आर्यों से ही नहीं अनार्यो से भी भीषण युद्ध करनी पड़ी! इस बहादुर जाति के प्रबल शासक सुदास से अकेले सभी ३० राजाओ से युद्ध करना पड़ा जीने नाम है - १. शिन्यु २. तुवर्श ३. द्रुहाहू ४. कवश ५. पुरु ६. अनु ७. भेद ८. वेकर्ण १०. अन्य वेकर्ण ११. यदु १२. मत्स्य १३. पक्थ १४. भालन १५. अलीना १६. विशानिन १७. अज १८. शिव १९. शीग्र २०. यक्षयु २१. यद्धमादी २२. यादव २३. देवक मान्य्मना २४. चापमाना २५. सुतुक २६. उचथ २७. क्षुत २८. वुद्ध २९. मनयु ३०. पृथु ! प्राचीन काल में रुहेलखण्ड: प्राचीन काल में यह क्षेत्र पंचाल राज्य तथा विभाजित पंचाल के उत्तरी पंचाल में नाम से जाना जाता था। पूर्व दिशा में गोमती, पश्चिम में यमुना , दक्षिण में चंबल तथा उत्तर में हिमालय की तलहटी से घिरे पंचाल का भारतीय संस्कृति के विकास एवं संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । प्राचीन काल में कुमायूँ के मैदानी क्षेत्र से लेकर चम्बल नदी तथा गोमती नदी तक विस्तृत यह क्षेत्र प्राचीन काल से छठी शताब्दी ई० पू० तक पंचाल राज्य के अन्तर्गत रहा। इसके पंचाल नामकरण के बारे में अनेक मान्यतायें हैं जैसे भरतवंशी राजा भ्रम्यश्व के पाँच पुत्रों में बंटने के कारण अथवा कृवि , तुर्वश , केशिन , सृंजय एवं सोमक पाँच वंशों द्वारा यहाँ राज्य करने के कारण प्राचीन काल में इसका नाम पंचाल पड़ा इत्यादि। प्राचीन काल में जब आर्य शक्ति का केन्द्र ब्रह्मावर्त था तब पंचाल एक समुन्नत राज्य था। राजा भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा , इन्ही सम्राट भरत का राज्य सरस्वती नदी से लेकर अयोध्या तक फैला हुआ था तब गंगा - यमुना के दोआब में स्थित पंचाल उनके राज्य का सम्पन्न भाग था। सम्राट भरत के ही काल में राजा हस्ति हुए जिन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर बनाई । राजा हस्ति के पुत्र अजमीढ़ को पंचाल का राजा कहा गया है। राजा अजमीढ़ के वंशज राजा संवरण जब हस्तिनापुर के राजा था तो पंचाल में उनके समकालीन राजा सुदास का शासन था। राजा सुदास का संवरण से युद्ध हुआ जिसे कुछ विद्वान ॠग्वेद में वर्णित ' दाशराज्ञ युद्ध ' से समीकृत करते हैं। राजा सुदास के समय पंचाल राज्य का बहुत विस्तार हुआ । राजा सुदास के पश्चात संवरण के पुत्र कुरु ने अपनी शक्ति बढ़ाकर पंचाल राज्य को अपने अधीन कर लिया तभी यह राज्य संयुक्त रुप से 'कुरु - पंचाल ' कहलाया। परन्तु कुछ समय बाद ही पंचाल पुन: स्वतन्त्र हो गया। नाग्भारशिव जाति नाग्भारशिव जाति हम देख चुके है कि सुदास भरत जाति से जुड़े थे जो कालांतर मे जाकर भर जाति कहलाई ! दिवोदास और उसके पुत्र सुदास दोनों के नाम के अंत मे "दास" लगा हुआ है जो ये दर्शाता है वो दास या नाग वंश से जुड़े हुए थे ! प्रत्येक नागो के लिए दास नाम उनकी प्रजाति का नाम बन गया था ! नाग वंश का वर्णन वेदों मे और पुरानो मे भरा पड़ा है ! नागो के साथ शिव शब्द कैसे जुड़ गया इसका एक लम्बा इतिहास है ! भरत वंश के लोग शिव कि पूजा किया करते थे शिवलिंग को धारण करने के कारण नाग, भारशिव कहलाने लगे ! यही भारशिव वंश के लोग भर नाम से प्रशिद्ध हुए ! भर शब्द कि व्याख्या भारशिव के अर्थ मे करते हुए डॉ . काशीप्रसाद जयसवाल कहते है कि विन्ध्याचल क्षेत्र का भरहुत , भरदेवल, नागोड़ और नागदेय भरो को भारशिव साबित करने का अच्छा प्रमाण है! मिर्जापुर , इलाहबाद तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र भरो के प्रदेश रह चुके है ! इस तरह भर का संस्कृत नाम भारशिव है ! इस युग को कुषाण -युग कहा जाता है ! जब भर रायबरेली के शासक थे (७९०- ९९० AD ) भर राजसता स्थापित करने के महत्वाकांक्षी थे ! भारशिव एक जाति का नाम नहीं बल्कि उनकी उपाधि थी ! भारशिव विन्द्य्शक्ति कि जन एकता का प्रतिक थी ! तीसरी शताब्दी के पूर्वाध से प्रारंभ होता हुआ उत्तर भारत तथा मध्य भारत पर नाग्वंशियो का राज्य था ! शुरू मे नाग वंश यहाँ मथुरा और ग्वालियर मे ही था पर कालांतर मे धीरे धीरे इसका विस्तार होकर विदर्भ, बुंदेलखंड तक फैलता चला गया ! ऐसी मान्यता है कि भर लोग मुख्यत: दो कुलो मे बाते हुए थे ! एक शिवभर और दूसरा राजभर . शिबभरो का कार्य राजसता से जुदा नहीं था जबकि राजभर का कार्य राजसत्ता स्थापित कर शासन चलाना था ! राजभर प्रवरसेन को अपना नेता चुना (२८४ ई.) ! गंगा के पवित्र जल कि सोगंध खाकर दोनों एक हुए और कालांतर मे "भारशिब" कहलाए ! भारशिबो के गौरबशाली इतिहास वीरान खंडर, टीले और मंदिर स्तूप उनके प्रकर्मी अतीत को आज भी जीवित रखे हुई है! शिव- पार्वती कि उपासना उनके मंदिर का प्रबल उदाहरण है ! भारशिव नाग वंश से भर शब्द कि उत्पत्ति कि कल्गनना तीसरी या चौथी शताब्दी से निरुपित होती है ! भवनाग ही भारशिव वंश का प्रबल शासक माना जाता है ! भर शब्द भरत जाति से बना है ! इस वाक्य को इस प्रकार कहना कि भर शब्द भारशिव नागो से बना है ! कोई एतिहासिक अंतर नहीं जान पड़ता है ! डॉ. कशी प्रसाद जयसवाल ने भारतीय इतिहास मे ११५ A.D का काल जोड़ कर भारशिव काल कहा है और इस तरह से इतिहास मे नया अध्याय जुड़ गया !