भार -भूतेश एवं भार तीर्थ

सर हेनरी इलियट ने हिन्दू ट्राइब्स एंड कास्ट के पृष्ठ ३६७ में लिखा है -- - ''आश्चर्य के साथ लिखना पड़ता हैकि हिन्दू पुराणों में भर जाति का कोई  जिक्र नहीं है / केवल ब्रह्म पुराण में जयध्वज के वंशजों में भरताजशब्द का वर्णन  है / सर हेनरी इलियट ने जब यह लिखा होगा तब तक संभवतः भारशिव शब्द प्र काश में नहींआया होगा / अथवा पुराणों में प्रयुक्त भर शब्द की गंभीरता की ओर  उनका ध्यान नहीं गया होगा / [भारशिव शब्द मध्यप्रदेश के सिवनी , छिन्दवाड़ा , बालाघाट, बैतूल ,दुर्ग ,इन्दौर म हाराष्ट्र के भंडारा ,अकोला , यवतमाल , वर्धा , चंद्रपुर- चांदा , अमरावती ,नागपुर आदि [ ये जिले पहले मध्यप्रदेश में थे /] मेंद्वितीय श ताब्दी के ताम्र पत्र प्राप्त होने के बाद प्रकाश में आया /] आज जब हम यह जान गए हैं कि भर एवं भारशिव एक ही हैं ,तब यह कहना उ चित होगा कि पुराणों में इसज़ाति का किसी न किसी रूप में वर्णन विद्यमान है /  बामन पुराण के भुवन कोष खंड के श्लोक देखिये -- -- ''वेणाश्चैव तुषाराश्च , बहुधा वह्यातोदरा / आत्रेयाः ,सभरद्वाज प्रस्थालाश्च दशेरकः // लम्पकास्ताव कारामाश्चूडिकास्तंगणे सह / अलसाश्कालि भद्राश्चकिरातांचजातयः // अर्थात -- '' वेणु , तुषार , बहुध , वाह्यातोदर , आत्रेय , सभरद्वाज , प्रस्थल , दशेरक , ल म्पक , तावकाराम ,चूडिक , तंगण , अलस , अलिभद्र ये सब किरात लोगों की जा तियां हैं / इसमें सभरद्वाज ध्यान देने योग्य है /वे राजभर जो भारद्वाज या भरद् वाज लिखते हैं अथवा महर्षि भरद्वाज के नाम पर अपना गोत्र बताते हैं ''सभरद्वा ज किरात वर्ग से है '' पर ध्यान दें / तुलसीदास के दोहे ''हरि तिय लूटत नीच भर  , जय ना मीचु तेहिहेतु , अथवा भिल्लन लूटी गोपिका , वही अर्जुन वही वाण ''  भी किरात वर्ग ही सिद्ध करते हैं / इसी प्रकार वेराजभर जो भार्गव लिखते हैं को  पद्म पुराण के [भरत वर्ष में पर्वत और नदी खण्ड के ] श्लोक क्रमांक ४६ कोपढ़ना  चाहिए , जिसमें लिखा है -- -'' पुड्रा; भार्गाः किरातश्च '' / पुराणों के गहन अध्ययन की आवश्यकता है/कहते हैं हत्यारा और चोर कितने भी  चालाक हों कोई न कोई सुराग छोड़ ही जाते हैं / इसी प्रकार पुराणकारोंने अनचाहे  ही सही भार ज़ाति के विषय में पुराणों में कोई न कोई संकेत दे दिए हैं / वर्ष १९६९ -७०- ७१ का अधिकांश समय मैनें जबलपुर विश्व विद्यालय [वर्तमान रानी दुर्गावतीविश्व विद्यालय ] के ग्रंथालय में बहुत से ग्रन्थ पढ़ने में बिताये / अमरबहादुर सिंह ''अ मरेश '' का राज कलश ,अंग्रेज इतिहासकारों के विभिन्न का अवलोकन मैंने उसी  केन्द्रीय ग्रंथालय में किया / वहीँ पर मैंने गीता प्रेसगोरखपुर का कल्याण ''शिव पुरा ण विशेषांक '' पढ़ा , जिसमें '' अन्सभार सन्निवेशित शिव लिंगोद्वाहन शिवसुपरि तिष्ट समुत्पादित राजवंशानाम पराक्रम अधिगतः भागीरथी अमल जलः / मूर्धाभिशि क्तानाम दशाश्वमेधःअवभृथस्नानाम भारशिवानाग '' का उल्लेख था / विभिन्न पुरा णों को पढ़ते समय मैंने एक पुराण में ''भारतीर्थ '' का उल्लेख पढ़ा / भार तीर्थ रे वा नदी [नर्मदा ] के तट पर है / केन्द्रीय शासकीय सेवा में जाने के बाद भारतीय धार्मिक , ऐतिहसिक , वांग्मय पढ़ ने की गति स्वभाविक रूपसे धीमी पड़ गई / किन्तु अभी एक दिन सूर्य पुराण पढ़ ते समय जब मेरी दृष्टि ब्रह्मा नारद सम्वादादि कथनखंड के श्लोक – '' रूद्रकोटया, गयायां च शालिग्रामेसमरेश्वरे / पुष्करे भारभूतेशे गोकर्णे मंडलेश्वरै // ''२९ // पर गई / तब पुनः मेरा ध्यान भार जाति एवं उसके अधिष्ठाताशिव पर ग या / भार तीर्थ रेवा [नर्मदा ] के तट पर बताया गया है / रेवा नदी का उद्गम अ मरकंटक से हुआ है /इस नदी के तट पर भार जाति के बहुत से गाँव आज भी दे खे जा सकते हैं / मंडला , जबलपुर , नरसिंहपुर,एवं होशंगाबाद जिले के नर्मदा तट  पर बसे कई गांवों को गिनाया जा सकता है -- जहाँ आज भी भर या भारया भारिया , भरिया ,रजभर - राजभर जाति के लोग बहुसंख्या में निवास करते हैं / भार जाति का यह समूहनर्म दा तट पर एकत्र होकर शिव पूजन करता था ,वही स्थान भार तीर्थ के नाम से जा ना जाता है / सूर्य पुराण में वर्णित भार भूतेश तो स्पष्टतः भार ज़ाति का उल्लेख करता है / भा र भूतेश का अर्थ स्पष्ट करें तोभूत का अर्थ प्राणी अथवा जाति है / भार भूतेश का  पूर्ण अर्थ भार जाति का ईश्वर शिव है / भार भूतेश शब्दभार जाति एवं शिव का  घनिष्ठ सम्बन्ध दर्शाता है / डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद बलिया ने अपने एक लेख में  लिखाथा कि शिव राजभर [भारशिव ] जाति के थे / यह अतिश्योक्ति नहीं है / यदि  हम शिव को अपनी आँखों मेंइतिहास का चश्मा लगाकर देखें तो यह सब बडबोला पन नहीं बल्कि सत्य है / वाराणसी ,कैलाश आदि इसीभूमि में आपके सामने हैं ज बकि ब्रह्मा के ब्रह्मलोक , विष्णु के बैकुंठ , इंद्र के स्वर्ग का कोई अता पता नहीं  है/वामन पुराण में विष्णु एवं वीरभद्र [वीरसेन ] के युद्ध का उल्लेख है / वीरभद्र  की पूजा आज भी खरवरियावंशी रजभारों में कुल देवता के रूप में की ज़ाती है / प्र माण के रूप में कटनी जिला के ग्राम गनयारी में निवासकरने वाले श्री हेतराम रा जभर के परिवार का उल्लेख किया जा सकता है / इस राजभर परिवार का बैंक[शा खा या गोत्र ] खरवार है और इस परिवार के कुलदेवता वीरभद्र हैं / मेरे एक पुत्र  श्री कुमुदसिंघ का विवाहइसी परिवार में हुआ है / वाकाटक नरेशों ने अपने ताम्रा पत्रों में भारशिव नाग वंश की प्रशंसा करते हुए दशा श्व मेध का उल्लेख कियाहै / उसी दशाश्व मेध का उल्लेख वामन पुराण में है / भ गवान शंकर ने ब्रह्मा का एक सिर काट दिया था / ब्रह्मह्त्या से मुक्त होने के  लिए शिव ने वाराणसी में दशाश्व मेध का धर्षण किया था -- '' गत्वा सुपुण्यम नगरीसुतीर्था दृष्टवाचा लोलम सा दशाश्वमेधम /'' यदि हम धैर्य  पूर्वक पुराणों का अध्ययन करें तो निश्चित रूप सेइस जाति के इतिहास के सम्बन् ध में महत्वपूर्ण तथ्य सामने आयेंगे / शिव को भारेश्वर कहा जाता है अर्थातभार  कौम का अधीश्वर / नाग वंश अथवा भार शिव नाग वंश के राजाओं की क्रम बढ़ ता पुराणों में खोज करइतिहास को नया आयाम दिया जा सकता है / [लेखक -- आचार्य शिवप्रसाद सिंह राजभर ''राजगुरु''] [यह लेख ''राजभर मार्तण्ड '' मासिक पत्रिका के जनवरी ,फरवरी २००६ अंक में छप  चुका है /]