जाति एक नाम

भर/राजभर जाति के कई उपनाम है ! ये अनेक जिलो मे अनेक नामो से पुकारे जाते है ! ऐसे ही कई उपनाम जैसे भोर, बोर , भोवरी, बैरिया और भैरिया, बरिया , बैरी, भैराय और अन्य उपनामों से जाने जाते है ! भर जाति राजभर , भरत , भरपतवा, राज्ज्भर और राजवर नामो से भी जाने जाते है ! मिक्ष्रण जातियों के इतिहास का अध्ययन करना जटिल पहेली है ! आर्यवादी लेखको ने चार वर्णों का निर्माण किया था ! पर स्त्रियों तथा पुरुषो के परस्पर संयोग से अनेक जातियां , उपजातीय बनती चली गयी ! जिसे वर्णशंकर जातिया कहते है ! भरो या राज्भारो का कही नामकरण इस वर्ण शंकरता पद्धति मे नहीं आया है ! वे आर्य जाति निर्धारण व्यवस्था से सर्वदा अलग थे ! अंतिम जनगणना रिपोर्ट १९३१ ई. के अनुसार भरो को तिन मुख्य उपजातीय गिनाए गए - भारद्वाज, कनौजिया और राजभर ! कनौज तथा कानपूर के आसपास के रहने वाले कनौजिया कहलाते थे ! भर या राजभर जाति की वंशावली वृक्ष भारतीय भू-भाग पर आज भी मौजूद है ! अपने स्वजनों की खोज मे सबसे पहले मै आपको मध्य भारत ले चलता हूँ ! यहाँ पाई जाने वाली भरिया जाति का सम्बन्ध भी भर/राजभर से है ! उत्तर प्रदेश , बिहार तथा बंगाल मे निवास करने वाले चेरू जाति भी भर और राजभर के ही उपनाम है ! भर जाति की एक और उपजती है जिसे खरवार जाति के नाम से जाना जाता है ! ऐसा माना जाता है की इलाहबाद जिले मे खैरगढ़ एक परगना है जहा कत्था या खैर का पेड़ बहुतायत है ! इस क्षेत्र के भर लोग खैर के पेड़ से कत्था निकलने का कारोबार करते थे ! इसी व्यवसाय के कारण उनका नाम खरवार रखा गया ! स्योरी उपजती के उत्पति के विषय मे मुख्यतया सभी इतिहासकार यह मानते है की ये भगवान शिव के पुजारी थे और इनका नाग जाति से अटूट सम्बन्ध था ! हेनरी इलियट चेरू और स्योरी को एक समान मानती है तथा प्राचीन भारशिव या भर जाति से इसकी उत्पति बताती है ! राज्ज्हर/ राज्ज्हर शब्द की उत्पति राजभर से हुई है ! राज्ज्हर/ राज्ज्हर शब्द राजभर शब्द का प्रयाय्वाची है ! भर जाति के इतिहास से पता चलता है की भर वंश के बहुत से लोग देश मे भू-स्वामी थे ! भर वंश के इस भू-स्वामी को राजभर या राज्ज्हर/ राज्ज्हर कहा गया ! और भी बहुत सारी जानकारिया है जो हमे हमारे स्वजनों के बारे मे मालूम करनी है ! मै आपको इनसे अवगत करते रहूँगा !