महाराजा भरद्वाज

भर जाति का बलिदान अमर है ! वह देश के लिए था ! देश की रक्षा मे अनगिनत बलिदान चढ़ाने वाली जाति मे भर प्रथम थे ! भर जाति के सम्राटो का क्रमबद्ध इतिहास खोजना अति कष्ट साध्य कार्य है ! जब कही पर किसी सम्राटो का इतिहास प्राप्त भी होता है तो इसके संतति का कोई इतिहास नहीं मिलता है ! अतः वान्श्वाली का क्रम टुटा हुआ सा प्रतीत होता है ! भारशिव वंश के महाराजा भारद्वाज अवध के शासक थे ! महाराजा भारद्वाज के शासनकाल का निर्धारण करना बहुत मुस्किल है ! ऐसा माना जाता है की अवध क्षेत्र मे भर जाति की प्रधानता प्रगेतिहासिक काल से ही थी ! वे अवध से लेकर नेपाल की सीमा तक फैला हुआ था ! टालमी ने जो भारत का मानचित्र अपने प्रवास के दौरान बनाया था जिसका प्रकासन : इंडियन एंटीक्वेरी" मे वर्गीज द्वारा किया गया है ! उनके अनुसार भरदेवी आज का भरहुत ही है जिसे भरो ने बसाया था ! इसकी संपुष्टि जनरल कनिम्घम ने " अर्किलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया" मे किया था ! "बंगाल एसियाटिक जनरल वोलुम XVI , पृष्ट ४०१-४१६ ) मे भी इस तथ्य को स्वीकार किया गया है !महाराजा भारद्वाज उसी काल मे भारशिवो मे एक प्रबल शासक थे ! इस विषय मे एक कहानी प्रचलित है जो मै यहाँ बता रहा हूं! भारत के प्राचीनतम नगरो मे अवध की पहचान होती है ! इस नगर को बसने वाले देश के मूल लोग ही थे ! इस बात के अनेक प्रमाण उपलब्ध है की यहाँ के प्रबल शासक भर जाति के लोग रह चुके है ! क्ष्री रामचंद्र के पहले भी यहाँ भरो का विस्तृत साम्राज्य था ! प्राचीन अयोध्या को सूर्यवंशी ने ध्वस्त कर डाला, जिसे यहाँ के मूल जातियों ने बसाया था ! सूर्यवंश के पतन के बाद अयोध्या पुन: भरो के अधिकार क्षेत्र मे आ गया ! इस आशय का वर्णन सर सी. इलिएट ने अपने ग्रन्थ "क्रोनिकल्स ऑफ़ उन्नव" मे विस्तृत रूप से करते है ! "इंडियन एंटीक्वेरी" संपादक जैसे वर्गीज (१८७२) मे "आन दि भर किंग्स ऑफ़ इस्टर्न अवध" नामक शीर्षक मे गोंडा का बी. सी. एश. अंग्रेज अधिकारी डब्लू. सी. बेनेट कहता है की अवध के पूर्व मे ४०० वर्षो तक (१०००-१४०० ई.) भरो का साम्राज्य था ! इसी तरह का वर्णन फरिस्ता रिकॉर्ड मे भी मिलता है ! जो "तबकत- ई-नसीरी" मे भी मिलता है ! प्रकाशन विभाग, सुचना और प्रशासन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित (१९७१ ई.), हमारे देश के राज्य "उत्तर प्रदेश" के पृष्ट १६ और १७ पर अंकित है की सन् ११९४ से १२४४ ई. तक अवध पर भरो का सम्राज्य था ! अवध क्षेत्र मे भरो की बहुलता के कारण क्षावास्ती पर सुहलदेव (१०२७-११७ ई.) तथा उनके वंशजो ने बहुत दिनों तक साम्राज्य स्थापित किया ! देखे ( हिस्ट्री ऑफ़ बहराइच, पृष्ट ११६-११७; आइना मसूदी, तरजुमा मिराते, पृष्ट ७८, संहारिणी चालीसा) भारद्वाज नामक भारशिव वंश ने इसी अवध तथा गोरखपुर क्षेत्र पर अपना राज्य स्थापित किया ! उसके बाद उसका उतराधिकारी सुरहा नामक शासक हुआ ! भारद्वाज उपनाम की जो गणना सेन्सस रिपोर्ट (१८९१) मे भरो के साथ संयुक्त रूप से दि गयी है, वह इस तथ्य को साथ मे या ध्यान मे रख कर दिया गया है की ये भारद्वाज उपनाम वाले लोग ब्राह्मण जाति के भारद्वाज उपनाम वाले लोगो से अलग थे ! सन् १८९१ ई. की जनगणना के अनुसार बलिया मे ८६, गोरखपुर मे १४९८ तथा आजमगढ़ मे २५६३ लोग भारद्वाज उपनाम से जाने जाते थे जो भर जाति से सम्बंधित थे ! भरो मे भारद्वाज उपनाम ऋषि भारद्वाज से नहीं आया है बल्कि ये उपनाम यही भर राजा भारद्वाज के नाम से बना है ! वे अवध के राजा भारद्वाज की संतति के रूप मे लिखते है न की ऋषि भारद्वाज के रूप मे, जिनसे भारद्वाज गोत्र बना !