नाग्भारशिव जाति

हम देख चुके है कि सुदास भरत जाति से जुड़े थे जो कालांतर मे जाकर भर जाति कहलाई ! दिवोदास और उसके पुत्र सुदास दोनों के नाम के अंत मे "दास" लगा हुआ है जो ये दर्शाता है वो दास या नाग वंश से जुड़े हुए थे ! प्रत्येक नागो के लिए दास नाम उनकी प्रजाति का नाम बन गया था ! नाग वंश का वर्णन वेदों मे और पुरानो मे भरा पड़ा है ! नागो के साथ शिव शब्द कैसे जुड़ गया इसका एक लम्बा इतिहास है ! भरत वंश के लोग शिव कि पूजा किया करते थे शिवलिंग को धारण करने के कारण नाग, भारशिव कहलाने लगे ! यही भारशिव वंश के लोग भर नाम से प्रशिद्ध हुए ! भर शब्द कि व्याख्या भारशिव के अर्थ मे करते हुए डॉ . काशीप्रसाद जयसवाल कहते है कि विन्ध्याचल क्षेत्र का भरहुत , भरदेवल, नागोड़ और नागदेय भरो को भारशिव साबित करने का अच्छा प्रमाण है! मिर्जापुर , इलाहबाद तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र भरो के प्रदेश रह चुके है ! इस तरह भर का संस्कृत नाम भारशिव है ! इस युग को कुषाण -युग कहा जाता है ! जब भर रायबरेली के शासक थे (७९०- ९९० AD ) भर राजसता स्थापित करने के महत्वाकांक्षी थे ! भारशिव एक जाति का नाम नहीं बल्कि उनकी उपाधि थी ! भारशिव विन्द्य्शक्ति कि जन एकता का प्रतिक थी ! तीसरी शताब्दी के पूर्वाध से प्रारंभ होता हुआ उत्तर भारत तथा मध्य भारत पर नाग्वंशियो का राज्य था ! शुरू मे नाग वंश यहाँ मथुरा और ग्वालियर मे ही था पर कालांतर मे धीरे धीरे इसका विस्तार होकर विदर्भ, बुंदेलखंड तक फैलता चला गया ! ऐसी मान्यता है कि भर लोग मुख्यत: दो कुलो मे बाते हुए थे ! एक शिवभर और दूसरा राजभर . शिबभरो का कार्य राजसता से जुदा नहीं था जबकि राजभर का कार्य राजसत्ता स्थापित कर शासन चलाना था ! राजभर प्रवरसेन को अपना नेता चुना (२८४ ई.) ! गंगा के पवित्र जल कि सोगंध खाकर दोनों एक हुए और कालांतर मे "भारशिब" कहलाए ! भारशिबो के गौरबशाली इतिहास वीरान खंडर, टीले और मंदिर स्तूप उनके प्रकर्मी अतीत को आज भी जीवित रखे हुई है! शिव- पार्वती कि उपासना उनके मंदिर का प्रबल उदाहरण है !
भारशिव नाग वंश से भर शब्द कि उत्पत्ति कि कल्गनना तीसरी या चौथी शताब्दी से निरुपित होती है ! भवनाग ही भारशिव वंश का प्रबल शासक माना जाता है ! भर शब्द भरत जाति से बना है ! इस वाक्य को इस प्रकार कहना कि भर शब्द भारशिव नागो से बना है ! कोई एतिहासिक अंतर नहीं जान पड़ता है ! डॉ. कशी प्रसाद जयसवाल ने भारतीय इतिहास मे ११५ A.D का काल जोड़ कर भारशिव काल कहा है और इस तरह से इतिहास मे नया अध्याय जुड़ गया !