राजभर राजा सुहेलदेव

राजभर राजा सुहेलदेव का इतिहास ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार श्रावस्ती नरेश राजा प्रसेनजित ने बहराइच राज्य की स्थापना की थीजिसका प्रारंभिक नाम भरराइच था। इसी कारण इन्हे बहराइच नरेश के नाम से भी संबोधित कियाजाता था। इन्हीं महाराजा प्रसेनजित को माघ मांह की बसंत पंचमी के दिन 990 ई. को एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुहेलदेव रखा गया । अवध गजेटीयर के अनुसार इनका शासन काल1027 ई. से 1077 तक स्वीकार किया गया है । वे जाति के राजभर थे, राजभर अथवा जैन, इस परसभी एकमत नही हैं। महाराजा सुहेलदेव का साम्राज्य पूर्व में गोरखपुर तथा पश्चिम में सीतापुर तकफैला हुआ था। गोंडा बहराइच, लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव व लखीमपुर इस राज्य की सीमा केअंतर्गत समाहित थे । इन सभी जिलों में राजा सुहेल देव के सहयोगी राजभर राजा राज्य करते थे जिनकी संख्या 21 थी। ये थे -1. रायसायब 2. रायरायब 3. अर्जुन 4. भग्गन 5. गंग 6.मकरन 7. शंकर 8. करन 9. बीरबल 10. जयपाल 11. श्रीपाल 12. हरपाल 13. हरकरन 14. हरखू15. नरहर 16. भल्लर 17. जुधारी 18. नारायण 19. भल्ला 20. नरसिंह तथा 21.कल्याण येसभी वीर राजा महाराजा सुहेल देव के आदेश पर धर्म एवं राष्ट्ररक्षा हेतु सदैव आत्मबलिदान देने केलिए तत्पर रहते थे। इनके अतिरिक्त राजा सुहेल देव के दो भाई बहरदेव व मल्लदेव भी थे जो अपनेभाई के ही समान वीर थे। तथा पिता की भांति उनका सम्मान करते थे। महमूद गजनवी की मृत्य केपश्चात् पिता सैयद सालार साहू गाजी के साथ एक बड़ी जेहादी सेना लेकर सैयद सालार मसूद गाजीभारत की ओर बढ़ा। उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। एक माह तक चले इस युद्व ने सालार मसूद केमनोबल को तोड़कर रख दिया वह हारने ही वाला था कि गजनी से बख्तियार साहू, सालारसैफुद्ीन, अमीर सैयद एजाजुद्वीन, मलिक दौलत मिया, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाहआदि एक बड़ी धुड़सवार सेना के साथ मसूद की सहायता को आ गए। पुनः भयंकर युद्व प्रारंभ हो गयाजिसमें दोनों ही पक्षों के अनेक योद्धा हताहत हुए। इस लड़ाई के दौरान राय महीपाल व रायहरगोपाल ने अपने धोड़े दौड़ाकर मसूद पर गदे से प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोटआई तथा उसके दो दाँत टूट गए। हालांकि ये दोनों ही वीर इस युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिनउनकी वीरता व असीम साहस अद्वितीय थी। मेरठ का राजा हरिदत्त मुसलमान हो गया तथा उसनेमसूद से संधि कर ली यही स्थिति बुलंदशहर व बदायूं के शासकों की भी हुई। कन्नौज का शासक भीमसूद का साथी बन गया। अतः सालार मसूद ने कन्नौज को अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलोंको नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं भेजना प्रारंभ किया। इसी क्रम में मलिक फैसल को वाराणसी भेजागया तथा स्वयं सालार मसूद सप्तॠषि (सतरिख) की ओर बढ़ा। मिरआते मसूदी के विवरण के अनुसारसतरिख (बाराबंकी) हिंदुओं का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थल था । एक किवदंती के अनुसार इस स्थान पर भगवान राम व लक्ष्मण ने शिक्षा प्राप्त की थी। यह सात ॠषियों का स्थान था, इसीलिएइस स्थान का सप्तऋर्षि पड़ा था, जो धीरे-धीरे सतरिख हो गया। सालार मसूद विलग्राम, मल्लावा, हरदोई, संडीला, मलिहाबाद, अमेठी व लखनऊ होते हुए सतरिख पहुंचा। उसने अपने गुरू सैयदइब्राहीम बारा हजारी को धुंधगढ़ भेजा क्योंकि धुंधगढ क़े किले में उसके मित्र दोस्त मोहम्मद सरदारको राजा रायदीन दयाल व अजय पाल ने घेर रखा था। इब्राहिम बाराहजारी जिधर से गुजरते गैरमुसलमानों का बचना मुस्किल था। बचता वही था जो इस्लाम स्वीकार कर लेता था। आइनये मसूदीके अनुसार – निशान सतरिख से लहराता हुआ बाराहजारी का। चला है धुंधगढ़ को काकिलाबाराहजारी का मिला जो राह में मुनकिर उसे दे उसे दोजख में पहुचाया। बचा वह जिसने कलमा पढ़लिया बारा हजारी का। इस लड़ाई में राजा दीनदयाल व तेजसिंह बड़ी ही बीरता से लड़े लेकिनवीरगति को प्राप्त हुए। परंतु दीनदयाल के भाई राय करनपाल के हाथों इब्राहीम बाराहजारी मारागया। कडे क़े राजा देव नारायन और मानिकपुर के राजा भोजपात्र ने एक नाई को सैयद सालार मसूदके पास भेजा कि वह विष से बुझी नहन्नी से उसके नाखून काटे, ताकि सैयद सालार मसूद की इहलीला समाप्त हो जायें लेकिन इलाज से वह बच गया। इस सदमें से उसकी माँ खुतुर मुअल्ला चल बसी। इस प्रयास के असफल होने के बाद कडे मानिकपुर के राजाओं ने बहराइच के राजाओंको संदेश भेजा कि हम अपनी ओर से इस्लामी सेना पर आक्रमण करें और तुम अपनी ओर से । इसप्रकार हम इस्लामी सेना का सफाया कर देगें। परंतु संदेशवाहक सैयद सालार के गुप्तचरों द्वारा बंदीबना लिए गए। इन संदेशवाहकों में दो ब्राह्मण और एक नाई थे। ब्राह्मणों को तो छोड़ दिया गयालेकिन नाई को फांसी दे दी गई इस भेद के खुल जाने पर मसूद के पिता सालार साहु ने एक बडीसेना के साथ कड़े मानिकपुर पर धावा बोल दिया। दोनों राजा देवनारायण व भोजपत्र बडी वीरतासे लड़ें लेकिन परास्त हुए। इन राजाओं को बंदी बनाकर सतरिख भेज दिया गया। वहॉ से सैयदसालार मसूद के आदेश पर इन राजाओं को सालार सैफुद्दीन के पास बहराइच भेज दिया गया। जबबहराइज के राजाओं को इस बात का पता चला तो उन लोगो ने सैफुद्दीन को धेर लिया। इस परसालार मसूद उसकी सहायता हेतु बहराइच की ओर आगें बढे। इसी बीच अनके पिता सालार साहूका निधन हो गया। बहराइच के राजभर राजा भगवान सूर्य के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य केमूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जोबृहस्पतिवार के बाद पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येकरविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। बालार्क ऋषि व भगवान सूर्य के प्रतापसे इस कुंड मे स्नान करने वाले कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाया करते थे। बहराइच को पहले ब्रह्माइच केनाम से जाना जाता था। सालार मसूद के बहराइच आने के समाचार पाते ही बहराइच के राजा गण– राजा रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल, हरपाल,हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में लामबंद हो गये। ये राजा गण बहराइचशहर के उत्तर की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर भकला नदी के किनारे अपनी सेना सहितउपस्थित हुए। अभी ये युद्व की तैयारी कर ही रहे थे कि सालार मसूद ने उन पर रात्रि आक्रमण (शबखून) कर दिया। मगरिब की नमाज के बाद अपनी विशाल सेना के साथ वह भकला नदीकी ओर बढ़ा और उसने सोती हुई हिंदु सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण मेंदोनों ओर के अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयीरहा। पहली लड़ार्ऌ मे परास्त होने के पश्चात पुनः अगली लडार्ऌ हेतु हिंदू सेना संगठित होने लगीउन्होने रात्रि आक्रमण की संभावना पर ध्यान नही दिया । उन्होने राजा सुहेलदेव के परामर्श पर आक्रमण के मार्ग में हजारो विषबुझी कीले अवश्य धरती में छिपा कर गाड़ दी । ऐसा रातों रात किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जब मसूद की धुडसवार सेना ने पुनः रात्रि आक्रमण कियातो वे इनकी चपेट मे आ गए। हालाकि हिंदू सेना इस युद्व मे भी परास्त हो गई लेकिन इस्लामी सेना केएक तिहायी सैनिक इस युक्ति प्रधान युद्व मे मारे गए । भारतीय इतिहास मे इस प्रकार युक्तिपूर्वक लड़ी गई यह एक अनूठी लड़ाई थी। दो बार धोखे का शिकार होने के बाद हिंदू सेना सचेत हो गईतथा महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में निर्णायक लड़ाई हेतु तैयार हो गई। कहते है इस युद्ध में प्रत्येक हिंदू परिवार से युवा हिंदू इस लड़ाई मे सम्मिलित हुए। महाराजा सुहेलदेव के शामिलहोने से हिंदूओं का मनोबल बढ़ा हुआ था। लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकलीझील तक फैला हुआ था। जुन, 1034 ई. को हुई इस लड़ाई में सालार मसूद ने दाहिने पार्श्व(मैमना) की कमान मीरनसरूल्ला को तथा बाये पार्श्व (मैसरा) की कमान सालार रज्जब को सौपातथा स्वयं केंद्र (कल्ब) की कमान संभाली तथा भारतीय सेना पर आक्रमण करने का आदेश दिया।इससे पहले इस्लामी सेना के सामने हजारो गायों व बैलो को छोड़ा गया ताकि हिंदू सेना प्रभावीआक्रमण न कर सके लेकिन महाराजा सुहेलदेव की सेना पर इसका कोई भी प्रभाव न पड़ा । वे भूखे सिंहों की भाति इस्लामी सेना पर टूट पडे मीर नसरूल्लाह बहराइच के उत्तर बारह मील की दूरीपर स्थित ग्राम दिकोली के पास मारे गए। सैयर सालार समूद के भांजे सालार मिया रज्जब बहराइचके पूर्व तीन कि. मी. की दूरी पर स्थित ग्राम शाहपुर जोत यूसुफ के पास मार दिये गए। इनकी मृत्य8 जून, 1034 ई 0 को हुई। अब भारतीय सेना ने राजा करण के नेतृत्व में इस्लामी सेना के केंद्र परआक्रमण किया जिसका नेतृत्व सालार मसूद स्वंय कर कहा था। उसने सालार मसूद को धेर लिया ।इस पर सालार सैफुद्दीन अपनी सेना के साथ उनकी सहायता को आगे बढे भयकर युद्व हुआ जिसमेंहजारों लोग मारे गए। स्वयं सालार सैफुद्दीन भी मारा गया उसकी समाधि बहराइच-नानपारा रेलवे लाइन के उत्तर बहराइच शहर के पास ही है । शाम हो जाने के कारण युद्व बंद हो गया औरसेनाएं अपने शिविरों में लौट गई। 10 जून, 1034 को महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में हिंदू सेना नेसालार मसूद गाजी की फौज पर तूफानी गति से आक्रमण किया। इस युद्ध में सालार मसूद अपनीधोड़ी पर सवार होकर बड़ी वीरता के साथ लड़ा लेकिन अधिक देर तक ठहर न सका । राजा सुहेलदेव ने शीध्र ही उसे अपने बाण का निशाना बना लिया और उनके धनुष द्वारा छोड़ा गया एक विष बुझा बाण सालार मसूद के गले में आ लगा जिससे उसका प्राणांत हो गया । इसके दूसरे हींदिन शिविर की देखभाल करने वाला सालार इब्राहीम भी बचे हुए सैनिको के साथ मारा गया।सैयद सालार मसूद गाजी को उसकी डेढ़ लाख इस्लामी सेना के साथ समाप्त करने के बादमहाराजा सुहेल देव ने विजय पर्व मनाया और इस महान विजय के उपलक्ष्य में कई पोखरे भीखुदवाए। वे विशाल ”विजय स्तंभ” का भी निर्माण कराना चाहते थे लेकिन वे इसे पूरा न कर सके ।संभवतः यह वही स्थान है जिसे एक टीले के रूप मे श्रावस्ती से कुछ दूरी पर इकोना-बलरामपुरराजमार्ग पर देखा जा सकता है। 1001 ई0 से लेकर 1025 ई0 तक महमूद गजनवी ने भारतवर्ष को लूटने की दृष्टि से 17 बार आक्रमणकिया तथा मथुरा, थानेसर, कन्नौज व सोमनाथ के अति समृद्ध मंदिरों को लूटने में सफल रहा ।सोमनाथ की लड़ाई में उसके साथ उसके भान्जे सैयद सालार मसूद गाजी ने भी …भाग लिया था।1030 ई. में महमूद गजनबी की मृत्यु के बाद उत्तर भारत में इस्लाम का विस्तार करने कीजिम्मेदारी मसूद ने अपने कंधो पर ली लेकिन 10 जून, 1034 ई0 को बहराइच की लड़ाई में वहां केशासक महाराजा सुहेलदेव के हाथों वह डेढ़ लाख जेहादी सेना के साथ मारा गया। इस्लामी सेना कीइस पराजय के बाद भारतीय शूरवीरों का ऐसा आतंक विश्व में व्याप्त हो गया कि उसके बाद आने वाले150 वर्षों तक किसी भी आक्रमणकारी को भारतवर्ष पर आक्रमण करने का साहस ही नहीं हुआ। सुहलदेव भर राजा बिहारिमल के पुत्र थे ! इनकी माता का नाम जयलक्ष्मी था ! सुहलदेव राजभर के तिन भाई और एक बहन थी बिहारिमल के संतानों का विवरण इस प्रकार है ! १. सुहलदेव २. रुद्र्मल ३. बागमल ४. सहारमल या भूराय्देव तथा पुत्री अंबे देवी ! ऐसा मान जाता है की सैयद सलार ने राजकुमारी अंबे देवी का अपहरण ४२३ हिजरी (१०३४ ई.) मे कर लिया था ! जिसके कारण सैयद सलार तथा राजा सुहलदेव के बिच घमासान युद्ध हुआ था ! इन बातो का उल्लेख मौला मुहम्मद गजनवी की किताब “तवारी ख ई – महमूदी” तथा अब्दुर्रहमान चिस्ती की किताब ” मिरात- ई- मसौदी” मे मिल जाति है ! अगर आप बलदेव प्रसाद गोरखा की पुस्तक “मंथनगीता” पड़ेंगे तो उसमे इस घटना का बहुत ही अच्छे से वर्णन किया है ! उसके कुछ पंक्ति मे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ !



बजा नगाड़ा गढ़ भराईच, सिगरी पल्टन भई तयार । गोला-गोला तोप तमन्चा, सब हथियार सजे सरदार । दुसरे डंका के बाजत, क्षत्रिय हथियार बन्द हो जाय । साजि सुसज्जित भइ पल्टन सब गेटों में पहुँची जाय । खुला गेट तिसरे डंका पर, पल्टन निकल पड़ी अरराय । भर भर भर भर सिंगरी पल्टन, ओ भर भर हट दिया लगाय । जाके पहुँची रण खेतों में, पल्टन लगी बराबर जाय । सुहेलदेव नृप गर्जन करके, बोले नंगी तेग उठाय । कौने कैद किया अंबे को, मेरी नजर गुजारो आय । कौन गाड़े है ये तम्बुआ, कौने माड़ौ लिया छवाय । गर गर गर गर गाजी गरजा, हमने धुरा दबाया आय । हमने गाडे है ये तम्बुआ, माड़ौ हमने लिया छवाय । हमने कैद किया अंबे को, बदला लेने को चलि आय । मुहम्मद गोरी तुमने मारा, अल्लाउद्दीन गोरी दिया मराय । उसका बदला लेने आये, हम गजनी के बीरजुझार । पूरा बदला हो ब्याहे से, तब वापस गजनी सरदार । सुहेलदेव नृप बोलन लागे, गाजी सुन लो कान लगाया । जल्दी छोड़ देव अंबे को, मेरी नजर गुजारो लाय । औ तुम भागि जाव गजनी को, वरना जाबे काम नसाय । गाजी बोला औ ललकार, ओ भर्राइच के सरदार । यातो बदला लूं भैंने का, या अंबे संग करुन विवाह । दगी सलामी है सैयद की, गाजी हुकुम दिया करवाया । भँवरि परै यहाँ अंबे की, सातौ भंवरि देव करवाय ।
गुस्सा होइके सुहेलदेव ने, फौजों का किया निरिक्षण जाय। गाजी बैठा है माडो में, ओ अंबे को फौज घिराय । उसके बाद गौओं का घेरा, दस हजार गौ लिया मंगाय । छिटपुट लश्कर जो गाजी की, भर को काट रही चितलाय । गाजी गौ के अन्दर बैठा, जिससे सुहेलदेव घबराय । गोला-गोली क्यों कर छूटे, सन्मुख गाय बध्द हो जाय । धर्म नही है भर क्षत्रिय का, जो गौ मां को करे प्रहार । पल्टन कट रही भर्राजा की, राजा गये बहुत घबराय । हिन्दूधर्म नाश हो जइहैं, जो न भगिनी लेब छुडाय । हे रण-चण्डी रण खेंतो की, मइया मुक्ति देव बतलाया । खड़ी योगिनी भइ दहिने पर, सूअर झुन्ड लिया मगंवान । औ घुसवाय दिया गौ अन्दर, अब गौंओं का सुना बयान । भगदड़ मच गयी गौओं की, खाली हुआ विकट मैदान । अब तक तुर्क भिरे रजभर पर, काटि-काटि के दिया सुलाय । आयी बारी राजभरों की, रण में कूदि पड़े अरराय । गोला छूटै भर्राइच कैं, गोला दनकि-दनकि अरराय । भई लड़ाई रण खेतों में, धुवना रहा गगन में छाय । चार घरी भर गोला बरसा, तोपें लाल बरन ना जाय । घैं-घैं तोपे लाल बरन भै, ज्वानन हाथ घरा ना जाय । तोप-चढाय दियो पीछे का, सबने खींच लई तलवार । खट-खट तेगा बाजन लागे, बाजै छपकि-छपकि तलवार । तेगा चटके वर्दमान के, कटि-कटि गिरे सुघरवा । चलै चुवब्बी औ गुजजराती,
मीना चले विलायत क्यार । क्या गति और यही समया की, सूरत कछू बरनि ना जाय । लाश के उपर लाश पाटि गै, जैसे भरडीह रहा दिखलाया। कटि-कटि मुण्ड गिरे धरती, ताड़ फलों का लगी बजार । झुके बांकुरे भर्राइच के, दोनों हाथ धरे तलवार । एक को मारैं काटि गिरावें, गिरकर गोर सनाका खाय । फौजै काटि गयी गाजी की, गाजी गया बहुत घबराय । पहुँचि सुरमा गै गाजी पर, पहुँचा विसल देव सरदार । सुहत्तध्वज पीछे से पहुँचा, समुंहे सुहेलदेव रण राय । डील नगोटा भै सैयद की, सैयद घोड़ा दिया भगाय । सुहेल देव गाजी को देखा, गाजी रहा भागता जाय । दे ललकार सुहलेदेव ने, गाजी ब्याह लेव करवाय । बदला लेलो तुम भैंने का, अब तुम भाग कहां को जाय । दई रगोदा सुहेलदेव ने, गाजी आगे गया लुकाय । सूर्यकुण्ड में गुलइची लटकी, उसने नीचे गया छिपाय । घोड़ा कुदाया सूर्यकुण्ड में, मकड़ी जाल गया बिथराय । सुहैलदे सैनिक संग ढूँढत, गिरगिट शान देखाया जाय । सैनिक पहुँचि गये कुवना पर, लीला देखा एक अपार । जहाँ से कूदा था ओ गाजी, मकड़ी बुन-बुन दिया बनाय । थोड़ा देख पड़ा ओ गाजी, सुहेलदेव ने देखा जाय । तीक्षण बाण संघान के मारा, गाजी गिरा धरनि पर जाय । पुरण काम हुआ गाजी का,, गाजी वही गया दफनाय ! अंबे देवी गयी महलो मे,, ख़ुशी मनाए मिली भर्राय!